16 Somvar Vrat Katha | Vidhi | Aarti | Udyapan

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16 Somvar Vrat Katha | Vidhi | Aarti | Udyapan - Solah Somvar Vrat भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए रखे जाते हैं। 16 Somvar के व्रत को ज्यादातर लड़कियां रखती हैं ताकि उन्हें सुंदर व सुयोग्य वर मिल सके। लेकिन 16 सोमवार के व्रतों को कोई भी रख सकता है। इनको रखने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस लेख में, मैं आपको 16 somvar vrat katha, Vidhi, Udyapan और Aarti भी देंगे। आपको इस लेख में 16 somvar vrat से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी मिलेगी।

इस लेख में जो कथा दी गयी है वह पूरी कथा है। और किसी भी वेबसाइट पर आपको ये पूरी कथा नहीं मिलेगी। इसलिए अपने व्रत को सफल करने के लिए सोलह सोमवार की पूरी कथा पढ़ें। 

16 Somvar Vrat Katha

16 सोमवार व्रत कब से शुरू करें - 16 Somvar Vrat Kab Se Shuru Kare

16 सोमवार के व्रत शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से प्रारम्भ किये जाते हैं। वैसे तो कभी भी सोलह सोमवार के व्रत का प्रारम्भ कर सकते हैं, लेकिन श्रावण, कार्तिक, माघ अथवा वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से व्रत का आरम्भ अधिक फल देता है। 

अगर आप किसी इच्छा हेतु सोलह सोमवार के व्रत रखना चाहते हैं, तो आप किसी भी महीने में अपने 16 सोमवार के व्रत शुरू कर सकते हैं। 

 एक बात का विशेष ध्यान रखें कि आप एक ही शिवलिंग या मूर्ति की पूजा करें। क्योंकि अगर आपको किसी भी काम से बाहर जाना पड़े तो आप अपनी शिवलिंग या मूर्ति को अपने साथ ले जा सकते हो।

16 Somvar Vrat Pujan Samagri

सोलह सोमवार के व्रत में माता पार्वती और भोलेनाथ का पूजन किया जाता है। शिवजी के पूजन के लिए नीचे दी गयी सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है -
  • दही 
  • दूध
  • शहद 
  • गंगाजल 
  • पानी 
  • बेलपत्र 
  • धतूरा 
  • चंदन 
  • प्रशाद 

सबसे पहले आपको भोलेनाथ को दूध, दही और शहद से स्नान करवाना है। इसके बाद पानी और फिर गंगाजल से स्न्नान करवायें। अब भोलेनाथ को चंदन लगायें। इसके बाद बेलपत्र, और धतूरा चढ़ाएं। अब भगवान का प्रशाद लगायें। 

Solah Somvar Vrat Katha in Hindi

सोलह सोमवार की व्रत कथा इस प्रकार है -

मृत्युलोक में भृमण करने की इच्छा करके एक समय श्री भूतनाथ महादेव जी माता पार्वती के साथ पधारे, वहाँ वे भृमण करते-करते विदर्भ देशांतगर्त अमरावती नाम की अति रमणीक नगरी में पहुँचे। अमरावती नगरी स्वर्ग के सद्र्श सब प्रकार के सुखों से परिपूर्ण थी। उसमें वहां के महाराज का बनाया हुआ अति रमणीक शिवजी का मंदिर था। उसमें कैलाशपति अपनी धर्मपत्नी के साथ निवास करने लगे। एक समय माता पार्वती अपने प्राणपति को प्रसन्न देख मनोविनोद करने की इच्छा करके ऐसे प्रश्न करने लगी, हे महाराज ! आज तो हम तुम दोनों चौसर खेलें। शिवजी ने प्राण प्रिया की बात को मान लिया और चौसर खेलने लगे। उस समय इस स्थान पर मंदिर का पुजारी ब्राह्वण मंदिर में पूजा करने को आया। माता जी ने पुजारी से सवाल किया कि पुजारी जी बताओ इस बाजी में किसकी जीत होगी।

ॐ नमः शिवाय। 
 
पुजारी बिना सोचे जल्दी ही बोल उठा कि जीत महादेव जी की होगी। थोड़ी देर में बाजी समाप्त हो गयी और पार्वती जी की विजय हुई तो पार्वती जी ने पुजारी को झूठ बोलने के अपराध के कारण कोढ़ी होने का श्राप दिया। कुछ समय में पुजारी के शरीर में कोढ़ पैदा हो गया। पुजारी अनेक प्रकार से दुःखी रहने लगा। इस तरह के कष्ट पाते-पाते जब बहुत दिन हो गए तो देवलोक की अप्सरायें शिवजी की पूजा करने उसी मंदिर में आई और पुजारी के कोढ़ के कष्ट को देखकर बड़े दयाभाव से उससे रोगी होने का कारण पूछने लगीं। 

shiv parvati pic

ॐ नमः शिवाय। 

पुजारी ने निःसंकोच वे सब बात उनसे कह दी। तब वे अप्सरायें बोलीं - हे पुजारी ! अधिक दुःखी मत होना, भगवान शिवजी तुम्हारे कष्ट को दूर कर देंगे। तुम सब व्रतों में श्रेष्ठ जो षोडश सोमवार का व्रत है उसको भक्ति के साथ करो। तब पुजारी अप्सराओं से हाथ जोड़कर विनम्र भाव से षोडश सोमवार के व्रत की विधि पूछने लगा। अप्सराएं बोलीं कि अप्सरायें बोलीं कि जिस दिन सोमवार हो उस दिन भक्ति के साथ व्रत करे, स्वच्छ वस्त्र पहने, आधा सेर अच्छे बिने, स्वच्छ गेहूँ का आटा ले उसके तीन अंगा बनावे और घी, गुड़, नैवेद्य, पुंगीफल, बेलपत्र, जनेऊ, जोड़ा, चन्दन, अक्षत, पुष्पादि के द्वारा प्रदोष काल में भगवान का विधि से पूजन करे तत्पश्चात्‌ अंगाओं में से एक शिवजी को अर्पण करे बाकी दो को शिवजी की प्रसादी समझकर उपस्थित जनों में बाँट दे और आप भी प्रसाद पावे। । इस विधि से सोलह सोमवार व्रत करे। तत्पचशात्‌ सत्रहवें सोमवार के दिन सवा सेर पवित्र गेहूँ के आटे की बाटी बनावे। उसमें तदनुसार घी और गुड़ मिलाकर चूरमा बनावे और शिवजी को भोग लगाकर उपस्थित भक्तों में बांटें, पीछे आप सकुटुम्भ प्रसाद लेवे तो भगवान शिवजी की कृपा से उसके मनोरथ पूर्ण हों जावें।

ॐ नमः शिवाय। 

ऐसा कहकर अप्सरायें स्वर्ग को चली ईं। ब्राह्मण ने यथाविधि षोडश सोमवार व्रत किया। तब भगवान शिवजी की कृपा से रोग मुक्त होकर आनंद से रहने लगा। कुछ दिन बाद जब फिर शिवजी और पार्वती उस मंदिर में पधारे, तब पुजारी को निरोग देख पार्वती ने पुजारी से रोग मुक्ति का कारण पूछा तो पुजारी ने सोलह सोमवार व्रत कथा कह सुनाई। तब तो पार्वती भी अति प्रसन्न हो ब्राह्मण से व्रत को विधि पूछकर व्रत करने को तैयार हुईं जिसके कारण उनके रूठे हुए पुत्र कार्तिकेय स्वयं माता के आज्ञाकारी हुए। कार्तिकेय को अपने यह विचार परिवर्तन का रहस्य जानने की इच्छा हुई और माता से बोले-- हे माताजी! आपने ऐसा कौन सा उपाय किया जिससे मेरा मन आपकी ओर आकर्षित हुआ। तब पार्वती जी ने वही षोडश सोमवार व्रत कथा उनको कह सुनाई। तब बे बोले कि इस व्रत को मैं भी करूंगा क्‍योंकि मेरा प्रिय मित्र ब्राह्मण बहुत दुःखी दिल से परदेस गया है। 

ॐ नमः शिवाय। 

हमें उससे मिलने की बहुत इच्छा है। तब कार्तिकेय जी ने इस व्रत को किया और उनको मित्र मिल गया। मित्र ने इस आकस्मिक मिलने का भेद कार्तिकेय जी से पूछा तो वे बोले--हे मित्र! हमने तुम्हारे मिलने की इच्छा से सोलह सोमवार व्रत किया था। अब तो ब्राह्मण मित्र को भी अपने विवाह की बड़ी इच्छा हुईं। उसने
कार्तिकेय जी से व्रत की विधि पूछी और यथाविधि व्रत किया । व्रत के प्रभाव से जब वह किसी कार्यवश विदेश गया तो वहाँ के राजा की लड़की का स्वयंवर था। 

राजा ने प्रण किया था कि जिस राजकुमार के गले में सब प्रकार श्रृंगारित हथिनी माला डालेगी मैं उसी के साथ अपनी प्यारी पुत्री का विवाह कर दूँगा। शिवजी की कृपा से ब्राह्मण भी स्वयंवर देखने की इच्छा से राजसभा में एक ओर बैठ गया। नियत समय पर हथिनी आई और उसने जयमाला उस ब्राह्मण के गले में डाल दी। राजा ने प्रतिज्ञा के अनुसार बड़ी धूम-धाम से कन्या का विवाह उस विप्र के साथ कर दिया और विप्र को बहुत-सा धन और सम्मान देकर सन्तुष्ट किया। विप्र सुन्दर कन्या पाकर सुख से जीवन व्यतीत करने लगा।

shiv parvati ki photo

एक दिन राजकन्या ने अपने पति से प्रश्न किया-- हे प्राणनाथ! आपने ऐसा कोन-सा बड़ा पुण्य किया जिसके प्रभाव से हथिनी ने सब राजकुमारों को छोड़कर आपको वरण किया ? ब्राह्मण बोला-हे प्राणप्रिये! मैंने अपने मित्र कार्तिकेय जी के कथनानुसार सोलह सोमवार का व्रत किया। जिसके प्रभाव से मुझे तुम जैसी रूपवान लक्ष्मी प्राप्त हुई। व्रत की महिमा को सुनकर राजकन्या को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह पुत्र की कामना करके व्रत करने लगी। शिवजी की दया से उसके गर्भ से एक सुन्दर पुत्र उत्पन्न हुआ। माता पिता दोनों उस पुत्र को पाकर प्रसन्न हुए और उसका पालन भली प्रकार से करने लगे। जब पुत्र समझदार हुआ तो एक दिन अपनी माता से प्रश्न किया तूने कौन-सा तप किया है जो मेरे जैसा पुत्र तेरे गर्भ से उत्पन्न हुआ ? माता ने सोलह सोमवार व्रत को विधि के सहित पुत्र के सम्मुख प्रकट किया। 

पुत्र ने ऐसे सरल व्रत को और सब तरह के मनोरथों को पूर्ण करने वाला सुना तो वह भी इस व्रत को राज्यधिकार पाने की इच्छा से करने लगा और सोमवार को यथाविधि व्रत करने लगा । उसी समय एक देश के वृद्ध राजा ने अपनी पुत्री का विवाह ब्राह्मण युवक के साथ करके बड़ा सुख प्राप्त किया | वृद्ध राजा के देवलोक जाने पर यही ब्राह्मण बालक गद्दी पर बैठया गया, क्योंकि दिवंगत भूप के कोई पुत्र नहीं था। राज्य का अधिकारी होकर भी वह ब्राह्मण पुत्र सोलह सोमवार व्रत को करता रहा। जब सत्रहवां सोमवार आया तो विप्र ने अपनी प्रियतमा से सब पूजन सामग्री लेकर शिवालय में चलने के लिए कहा। परन्तु राजकन्या ने दास-दासियों द्वारा सब सामग्रियां शिवालय भिजवा दीं और आप नहीं गई। जब राजा ने शिवजी का  पूजन समाप्त किया, तब यह आकाशवाणी हुई कि हे राजा! अपनी इस रानी को राजमहल से निकाल दो, नहीं तो यह तुम्हारा सर्वनाश कर देगी। 

वाणी को सुनकर राजा तत्काल ही मंत्रणागृह में आकर अपने सभासदों को बुलाकर पूछने लगा कि हे मंत्रियों! मुझे आज शिवजी की वाणी हुई है कि राजा तू अपनी इस रानी को निकाल दे, नहीं तो ये तेरा सर्वनाश कर देगी। मंत्री आदि सब बड़े विस्मय और दुःख में डूब गये क्योंकि जिस कन्या के कारण राज्य मिला है, राजा उसी को निकालने का जाल रचता है, यह कैसे हो सकेगा। अन्त में राजा जे उसे अपने यहाँ से निकाल दिया। रानी भाग्य को कोसती हुईं नगर के बाहर आईं। 

Shiv Parivar

बिना पदत्राण, फटे वस्त्र पहने, भूख से दु:खी, धीरे-धीरे चलकर एक नगर में पहुँची। वहाँ एक बुढ़िया सूत कातकर बेचने को जाती थी। रानी की करुण दशा देख वह बोली, चल तू मेरा सूत बिकवा दे, में वृद्ध हूँ, भाव नहीं जानती हूँ। बुढ़िया की ऐसी बात सुन रानी ने उसकी सूत की गठरी उतार अपने सिर पर रखी, थोड़ी देर बाद ऐसी आँधी आई कि सूत पोटली के सहित उड़ गया। बुढ़िया पछताती रह गई और रानी को अपने साथ से दूर रहने को कह दिया। 

अब रानी एक तेली के घर गई, तो तेली के सब मटके शिवजी के प्रकोप के कारण उसी समय चटक गये। ऐसी दशा देख तेली ने रानी को अपने घर से निकाल दिया। इस प्रकार रानी अत्यन्त दुःख पाती हुईं सरिता के तट पर गई, तो उस सरिता का समस्त जल सूख गया। इसके बाद रानी एक वन में वहां जाकर सरोवर में सीढ़ी से उतर पानी पीने को गयी तो उसके हाथ से जल स्पर्श होते ही सरोवर का नीलकमल के सदृश जल असंख्य कीड़ों से भर गया। रानी ने भाग्य पर दोषारोपण करते हुए उस जल को पान करके पेड़ की शीतल छाया में विश्राम करना चाहा, वह रानी जिस पेड़ के नीचे जाती उस पेड़ के पत्ते तत्काल ही गिरते गये। 

अपने वन, सरोवर, जल की ऐसी दशा देखकर उस वन के ग्वालों को अपनी गऊँओं को चारा और पानी न मिलता देख बड़े दु:खी भाव से ये सब कथा अपने गुसाईं जी से कही, जो उस जंगल में स्थित मंदिर में पुजारी थे। ग्वाले रानी को लेकर गुसाईं के पास गये। रानी की मुखकांति और शरीर की शोभा देख गुसाईं सब जान गये कि यह अवश्य ही विधि और गति की मारी कोई कुलीन अबला है। ऐसा सोच पुजारी जी ने रानी के प्रति कहा कि मैं तुमको पुत्री के समान रखूँगा मेरे आश्रम में ही रहो, मैं तुमको किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने दूँगा। गुसाईं के ऐसे वचन सुनकर रानी को धीरज हुआ, वह आश्रम में रहने लगी। परन्तु आश्रम में रानी जो भोजन बनाती उसमें कीड़े पड़ जाते, जल भर के लावे उसमें कीड़े पड़ जावें। अब तो गुसाईं जी दुःखी हुए और रानी से बोले कि हे बेटा! तेरे पर कौन से देवता का कोप है, जिससे तेरी यह दशा है? 

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पुजारी की बात सुन रानी ने शिवजी के पूजा करने को न जाने की कथा सुनाई तो पुजारी शिवजी महाराज की अनेक प्रकार से स्तुति करते हुए रानी के प्रति बोले कि बाई जी, तुम सब मनोरथों के पूर्ण करने वाले सोलह सोमवार व्रत को करो, उसके प्रभाव से अपने को कष्ट से मुक्त हुआ जानो । गुसाईं जी की बात को सुनकर रानी ने सोलह सोमवार व्रत को विधिवत सम्पन्न किया और सत्रहवें सोमवार के पूजन के प्रभाव से राजा के हदय में विचार उत्पन्न हुआ कि रानी को गए बहुत समय व्यतीत हो गया, न जाने कहाँ-कहाँ भटकती होगी, उसे ढूँढ़ना चाहिए। यह सोच रानी की तलाश करने के लिये चारों दिशाओं में दूत भेजे। वे तलाश करते हुए पुजारी के आश्रम में रानी को पाकर पुजारी से रानी को मांगने लगे परन्तु पुजारी ने उनसे मना कर दिया। तब राजा स्वयं पुजारी के आश्रम में गये और पुजारी से प्रार्थना करने लगे कि महाराज! जो बाईजी आपके आश्रम में रहती है बह मेरी पत्नी है। शिवजी के कोप से मैंने इसको त्याग दिया था।  
 
अब इस पर से शिव प्रकोप शांत हो गया है। इसलिए मैं इसे लेने आया हूँ आप इसे मेरे साथाचलने की आज्ञा दें। गुसांई जी की आज्ञा पाकर रानी राजा के साथ महल में आई, घर-घर में मंगल गान होने लगे, पंडितों ने विविध वेद मंत्रों का उच्चारण करके अपन्ती राजरानी का आवाहान किया ऐसी अवस्था में रानी ने पुनः अपनी राजधानी में प्रवेश किया, महाराज ने अनेक तरह से ब्राह्मणों को दानादि देकर संतुष्ट किया । इस प्रकार से राजा शिवजी की कृपा का पात्र बनकर राजधानी में रानी के साथ अनेक तरह से सुखों को भोग करते हुए आनन्द से जीवन व्यतीत करने लगा। ऐसे ही जो मनुष्य भक्ति से सोलह सोमवार का व्रत इत्यादि करता है तो वह इस लोक के सभी सुखों को भोग कर शिवपुरी को प्राप्त होता है।

16 Somvar Vrat Udyapan

ज्यादातर लोग तो सोलह सोमवारों को लगातार व्रत रखने के बाद व्रत का उद्यापन कर लेते हैं। उद्यापन वाले दिन शिवजी की पूजा-आराधना हेतु चार द्वारों का मंडप बनाएं। वेदी बनाकर ब्रह्मादिक देवताओं का आह्वान करके कलश स्थापना करें। उसमें पानी भरे हुए पात्र को रखें । 

पंचाक्षर मन्त्र से श्री सोमेश अर्थात भगवान शिव को वहाँ पर स्थापित करें। गन्ध, पुष्प, धूप, नैवेद्य, फल, दक्षिणा, ताम्बूल, दर्पण और छत्र आदि सब वस्तुओं को देवताओं को अर्पित करें। रात को पंचगव्य का प्राशन तथा शिवजी के भजनों और कथाओं से सारी रात जागरण करें। 

प्रात:काल देवेश की फिर पूजा करें और फिर विधिपूर्वक पूजन करें। पलाश की समिधा, सर्पि, पायस, तिल, ब्रीहि, जौ, मधु और दूर्वा इन आठों द्रव्यों से क्रमपूर्वक श्री सोमेश को एक सौ आठ आहुतियाँ दें । हवन की समाप्ति पर भूषण तथा दक्षिणा आदि से आचार्य का पूजन करें तथा ब्रत की पूर्ति के लिए आचार्य को गऊ का दान दें। 

इसी प्रकार आठ ब्राह्मणों को वस्त्र, अलंकार और चन्दन आदि से पूजन करके दक्षिणा सहित आठ कलश पकवान के भरे हुए अलग-अलग दें और उस समय यह कहें--' पकवान से भरे हुए घड़े को दक्षिणा सहित आपको देता हूँ, हे ट्विजश्रेष्ठ ! आप इसको ग्रहण कीजिए ।' इसके पश्चात्‌ ब्राह्मणों को भोजन कराकर कुट॒म्बीजनों सहित मौन होकर आप भी भोजन करें। 

16 Somvar Vrat Aarti in Hindi

सोलह सोमवार में कथा के बाद शिवजी की आरती की जाती है। 16 सोमवार की आरती इस प्रकार है -

ॐ जय शिव ओंकारा , प्रभु हर ॐ शिव ओंकारा|
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव, अर्द्धांङ्गी धारा ॥

|| ॐ जय शिव ओंकारा……||

एकानन, चतुरानन, पंचानन राजै |
हंसानन , गरुड़ासन, वृषवाहन साजै॥

|| ॐ जय शिव ओंकारा……||

दो भुज चार चतुर्भज दस भुज अति सोहै |
तीनों रुप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥

|| ॐ जय शिव ओंकारा……||

अक्षमाला, वनमाला ,मुण्डमाला धारी |
चंदन, मृगमद चंदा सोहै, त्रिपुरारी ॥

|| ॐ जय शिव ओंकारा……||

श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक, ब्रह्मादिक, भूतादिक संगे॥

|| ॐ जय शिव ओंकारा……||

कर मध्ये कमण्डलु, चक्र त्रिशूलधारी |
सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी ॥

|| ॐ जय शिव ओंकारा……||

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका |
प्रवणाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥

|| ॐ जय शिव ओंकारा……||

त्रिगुण शिव जी की आरती जो कोई नर गावे |
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥

|| ॐ जय शिव ओंकारा……||

16 Somvar Vrat Ka Mahatva - 16 सोमवार व्रत का महत्व

सोलह सोमवार व्रत का माहात्म्य इस प्रकार है -
  • 16 सोमवार का व्रत करने वालो को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
  • इस व्रत को करने से कुँवारी कन्याओं को सुंदर पति की प्राप्ति होती है।
  • अगर किसी को धन का आभाव है तो इस व्रत को करने से धन-दौलत की प्राप्ति होती है।
  • निःसंतान लोगों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।
  • अगर किसी की जन्म कुंडली में अशुभ ग्रह की दशा चल रही है, तो इस व्रत को रखने से अशुभता समाप्त हो जाती है।
  • इस व्रत को करने से पति-पत्नी के बीच होने वाले झगड़े समाप्त हो जाते हैं। 
  • काल महाकाल शंकर जी अपने भक्तों को सभी रोगों से मुक्त करते है।

16 Somvar Vrat Ke Niyam - 16 सोमवार व्रत नियम

16 सोमवार व्रत के नियम इस प्रकार हैं -
  • पूजा करने से पहले आपको निर्जल एवं निराहार रहना होता है।
  • भोजन के रूप में तीसरा हिस्सा ही खाना होता है।
  • इस व्रत में नमक का उपयोग नही किया जाता।
  • इस व्रत के दौरान शंकर जी के किसी भी मंत्र का जाप करें।
  • 16 सोमवार के दौरान किसी के घर का अन्न नही ग्रहण करना चाहिए।
Conclusion

इस लेख में, मैंने solah somvar vrat से जुड़ी सभी बातों के बारे में बताया है। अगर आप कुछ पूछना चाहते हैं, तो कमेंट करें। मैं आपके सभी सवालों का उत्तर जरूर दूंगा। लेख अच्छा लगे तो सभी के साथ शेयर करें। 

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