चित्रकार की व्यथा - Akbar Aur Birbal Ki Kahani Number 10

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चित्रकार की व्यथा -  Akbar Aur Birbal Ki Kahani Number 10
चित्रकार की व्यथा -  Akbar Aur Birbal Ki Kahani Number 10
अकबर बहुत गुस्से वाले स्वभाव के शहंशाह थे। उन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आ जाया करता था। कभी-कभी तो गुस्से में आकर छोटी सी गलती पर भी वे लोगों को बड़ी सज़ा दे दिया करते थे।

लेकिन बीरबल ये बात अच्छी तरह जानते थे, कि शहंशाह के गुस्से पर काबू कैसे पाना है। एक वही ऐसे इंसान थे, जो जानते थे शहंशाह को शांत कैसे करते हैं।

एक दिन की बात है, जब शहंशाह अकबर अपने ख्वाबगाह (कमरे) में पहुंचे, तो चारों तरफ दीवारों का रंग देखा और गुस्से से एक सिपाही को बुलाया।

अकबर – सिपाही, सिपाही….

सिपाही – जी…जहां पना!

अकबर – ये दीवारों के लिए इतने घटीया रंग को किसने चुना है?

सिपाही – वो……जहाँ पनाह!

अकबर – वो-वो, क्या कर रहे हो?

सिपाही – वो, आपने जहाँ पनाह।

अकबर – क्या, तुम्हारी इतनी हिम्मत, तुम हमसे इस तरह बात करो, जाओ उस रंगरेज़ को बुला कर लाओ, जिसने ये दीवारे रंगी हैं।

सिपाही – जी! जहां पना।

फिर थोड़ी ही देर में वह सिपाही उस रंगरेज़ को अकबर के ख्वाबगाह में लेकर आता है –

रंगरेज़ – आदाब! जहाँ पनाह।

अकबर – ओह! तो वो तुम हो जिसने ये दीवारे रंगी हैं।

रंगरेज़ – जहां पना क्या मुझसे कोई गलती हो गई है, मैं उसे अभी सुधार दूंगा।

अकबर – तुमसे गलती नही, बिल्कुल नहीं, हम तो पागल हो गए हैं। तुम हमारी ख्वाबगाह का रंग इतनी जल्दी कैसे बदल सकते हो।

रंगरेज़ – जहाँ पनाह आप चिंता मत करिए, मैं सारी रात काम करके आपकी ख्वाबगाह का रंग बदल दूँगा।

अकबर – ठीक है! लेकिन दोबारा गलती हुई, तो मैं तुम्हे रंग पीने को कह दूंगा, जाओ अपने रंग को लेकर आओ, हम चुनेंगे दीवारों का रंग। लेकिन ध्यान रहे अब कोई गलती न हो।

थोड़ी देर में वह रंगरेज़ अपने रंग लेकर आता है। उन रंगों में से एक रंग शहंशाह चुनते हैं। रंगरेज़ पूरी रात काम करके उन दीवारों का रंग बदलता है। लेकिन फिर भी शहंशाह को उन दीवारों का रंग पसन्द नही आता है, वह फिर से एक सिपाही को बुलाते हैं –

अकबर – सिपाही, जल्दी भागो और उस रंगरेज़ को बुलाकर लाओ।

सिपाही बिना कुछ कह जल्दी से भागता हुआ रंगरेज़ को बुलाने जाता है।

रंगरेज़ – अ…..आदाब जहाँ पनाह।

अकबर – हमारे मना करने के बाद भी इतना घटिया रंग इन दीवारों पर किया है, जाओ अपने रंग लेकर आओ।

रंगरेज़ गहरी सोच में डूबा हुआ, अपने रंग लेने जा ही रहा था, तभी वहीं रास्तें में उस रंगरेज़ की बीरबल से टक्कर हो जाती है।

रंगरेज – माफ करें, राजा बीरबल।

बीरबल – कोई बात नही, लेकिन तुम इतने परेशान क्यूं हो?

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रंगरेज़ सारा वाक्या बीरबल को सुनाता है। बीरबल कहते हैं, अगर तुमसे शहंशाह ने रंग पीने को कहा है, तो वो तुम्हे रंग ज़रूर पिलायेंगे। ये बात कह कर बीरबल रंगरेज़ के कान में कुछ कहते हैं और रंग लाने को कहते हैं। तभी रंगरेज़ अपने सारे रंग लेकर अकबर के पास जाता है।

रंगरेज़ – लीजिये जहाँ पनाह सारे रंग।

अकबर – अब तुम्हारी सज़ा ये है तुम ये रंग पीओ और कल तुम्हे इस ख्वाबगाह का रंग बदलना है।

रंगरेज़ – ले….लेकिन जहाँ पनाह, ठीक है!

(और रंगरेज़ उन घड़ों में से एक घड़े का रंग पी लेता है)

अकबर – ठीक है! अब तुम जाओ कल आना।

अकबर ने सोचा आज मैंने उस रंगरेज़ को रंग पिलाया है, उसकी ज़रूर तबियत खराब हो जाएगी, वह कल काम पर भी नही आएगा। फिर अगले दिन वह रंगरेज़ शहंशाह के ख्वाबगाह की दीवारें रंग रहा होता है, तभी उस रंगरेज़ पर शहंशाह की नज़र पड़ती है। शहंशाह हैरान रह जाते हैं और सोचते हैं – मैंने तो इसे कल रंग पिलाया था, पर यह आज काम पर कैसे आ सकता है। उसी वक्त शहंशाह उसके पास जाते हैं –

अकबर – अभी तक तुमने दीवारों तक का रंग नही उतारा है, बाकी काम कब होगा, हम तुम्हे इसकी सज़ा देंगे जाओ अपने रंग लेकर आओ।

रंगरेज़ घबरा जाता है और बीरबल से मिलने जाता है। बीरबल फिर कोई तरकीब उस रंगरेज़ को बताते हैं और कहते हैं – तुम घबराओ मत सब ठीक हो जाएगा। रंगरेज़ अपने रंग लेकर शहंशाह के पास जाता है –

रंगरेज़ – लीजिये जहाँ पनाह मैं रँग ले आया हूँ।

अकबर – हूँ🤔, आज तुम्हे इन घड़ों में से दो का रंग पीना है।

रंगरेज़ पहला घड़ा उठाता है और पीने लगता है। शहंशाह उसे रंग पीता देख बहुत हैरान हो जाते हैं और कहते हैं –
ठहरो! रंगरेज़ को रोक कर शहंशाह दूसरे घड़े का रंग चखते हैं और कहते हैं –

अकबर – क्या, ये तो शर्बत है! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमसे धोखा करने की। तुम्हारी ये ज़ुर्रत, बताओ ये तरकीब तुम्हे किसने बताई बताओ?

तभी उसी समय बीरबल वहाँ आते हैं और कहते हैं-

बीरबल – जहाँ पनाह ये तरकीब हमने इसे बताई। गुस्ताखी माफ। आपको शांत करने की कोई और तरकीब नही थी। इसलिए मैंने ऐसा किया।

अकबर ज़ोर से हँसते हैं और कहते हैं –

अकबर – हमे पहले ही समझ जाना चाहियें था, इस सब के पीछे कोई और हो ही नही सकता। बीरबल तुम्हे हमारे गुस्से पर काबू पाना बखूबी आता है, लेकिन हमें ये बात समझ नही आ रही कि तुम्हे पता कैसे चला कि आज मैं इसे कौन सा रँग पिलाने वाला हूँ।

बीरबल – जहाँ पनाह मुझे ये नही पता था कि आप आज इस रंगरेज़ को कौन-सा रँग पिलायेंगे, इसलिए मैंने रंगरेज़ से रसोई में से सभी रंगों के शर्बत बनाने को कहा।

अकबर – वाह बीरबल! बहुत खूब! आज आपने हमारे गुस्से से एक जान बचाली, पता नही हम गुस्से में क्या कर बैठते, जैसा मैं हर बार कहता आया हूँ, आपके जैसा कोई नही।

अकबर रंगरेज़ से कहते हैं – तुम्हे सजा तो मिलेगी, तुम हमारी ख्वाबगाह की दीवारों को रंगों और आज शाम की दावत में तुम भी शामिल होगे।

रंगरेज़ – जी! जहाँ पनाह, शुक्रिया जहाँ पनाह।

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